📰 प्रस्तावना: न्यायपालिका की सख्ती और प्रशासन से जवाबदेही की मांग
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक अहम मामले में राज्य सरकार से जवाब मांगा है। यह मामला हल्द्वानी और उधम सिंह नगर ज़िलों में स्थित आटा मिलों से दोहरी शुल्क (Double Taxation) वसूलने से जुड़ा है। न्यायमूर्ति आलोक वर्मा और न्यायमूर्ति रेखा शर्मा की खंडपीठ ने इस विषय पर सुनवाई करते हुए कहा कि यदि यह आरोप सही पाया जाता है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 265 का उल्लंघन होगा।
इस आदेश के बाद राज्य में प्रशासनिक हलचल तेज हो गई है। व्यापारिक संगठनों ने इसे आटा मिल मालिकों को राहत देने वाला निर्णय बताया है, वहीं विपक्ष ने इसे सरकार की “अविवेकपूर्ण नीतियों” का परिणाम कहा है।
📄 मामले की पृष्ठभूमि: कहां से शुरू हुआ विवाद?
हल्द्वानी और उधम सिंह नगर में कई आटा मिल मालिकों ने यह शिकायत की थी कि उनसे एक ही प्रक्रिया के लिए दो अलग-अलग शुल्क वसूले जा रहे हैं:
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प्रथम शुल्क: स्थानीय निकाय (नगर निगम/नगर पालिका) द्वारा लिया जा रहा प्रसंस्करण शुल्क
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द्वितीय शुल्क: खाद्य प्रसंस्करण एवं औद्योगिक विकास विभाग द्वारा लिया जा रहा लाइसेंस शुल्क
मिल मालिकों के अनुसार, ये दोनों शुल्क एक ही उद्देश्य की पूर्ति कर रहे हैं, और यह दोहरी कराधान की श्रेणी में आता है।
⚖️ हाईकोर्ट की टिप्पणियाँ: दोहरी कराधान पर सख्त नजरिया
न्यायालय ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के अधिवक्ता से यह स्पष्ट करने को कहा कि:
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क्या दोनों शुल्क का उद्देश्य एक ही है?
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क्या इन शुल्कों के पीछे स्पष्ट विधिक आधार है?
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किन परिस्थितियों में यह दोहरा शुल्क न्यायोचित ठहराया जा सकता है?
न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह तीन सप्ताह के भीतर इस विषय पर विस्तृत शपथ पत्र (Affidavit) दाखिल करे और यह स्पष्ट करे कि दोहरी वसूली किस आधार पर की गई है।
🧑⚖️ संविधानिक पहलू: अनुच्छेद 14 और 265 का उल्लंघन?
इस मामले में संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेद प्रासंगिक हैं:
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अनुच्छेद 14: समानता का अधिकार – सभी नागरिकों को समान कानून का संरक्षण प्राप्त है।
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अनुच्छेद 265: कोई भी कर कानून द्वारा स्वीकृत किए बिना नहीं वसूला जाएगा।
यदि यह सिद्ध हो जाता है कि दोहरा शुल्क मनमाने ढंग से लगाया गया है, तो यह इन दोनों अनुच्छेदों का उल्लंघन माना जाएगा।
🧑🔧 प्रभावित व्यापारी और संगठन
उत्तराखंड आटा मिल संघ के अध्यक्ष, श्री राजीव खंडूड़ी ने कहा:
“हम सरकार से केवल इतना चाहते हैं कि हमें दोहरा कर न दिया जाए। यह हमारे व्यवसाय की लागत बढ़ा रहा है और ग्रामीण क्षेत्रों में आटे की कीमतों पर भी असर डाल रहा है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि मिलें पहले से ही बिजली दरें, ट्रांसपोर्ट टैक्स और FSSAI लाइसेंस के भार में दब रही हैं। अब इस तरह के दोहरे शुल्क से व्यवसाय चलाना कठिन हो गया है।
📊 आर्थिक प्रभाव: महंगाई में योगदान
अगर आटा मिलों पर अतिरिक्त शुल्क लगाया जाता है, तो उसका सीधा असर उपभोक्ताओं तक पहुंचने वाले आटे की कीमत पर पड़ता है।
विशेषज्ञों के अनुसार:
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आटे की कीमत में ₹2–3 प्रति किलो तक वृद्धि हो सकती है
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ग्रामीण और निम्न-आय वर्ग पर इसका सीधा बोझ पड़ेगा
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इससे खाद्य महंगाई दर में अप्रत्यक्ष वृद्धि हो सकती है
📢 विपक्ष की प्रतिक्रिया: “यह भाजपा सरकार की नीति विफलता है”
राज्य में विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने इसे लेकर सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस प्रवक्ता, श्रीमती गरिमा महरा ने कहा:
“यह सरकार की नीति विफलता का प्रमाण है। छोटे व्यवसायों को राहत देने के बजाय सरकार उन्हें टैक्स के बोझ में दबा रही है।”
✅ संभावित समाधान और रास्ते
न्यायालय द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण के बाद राज्य सरकार के पास निम्नलिखित विकल्प हैं:
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दोहरे शुल्क को वापस लेना
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शुल्कों का समेकन कर एक पारदर्शी प्रणाली लागू करना
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संबंधित विभागों की भूमिका स्पष्ट करना
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व्यापार संघों के साथ विचार-विमर्श कर नीति निर्धारण करना
📌 निष्कर्ष: क्या यह फैसला एक मिसाल बनेगा?
उत्तराखंड हाईकोर्ट का यह आदेश केवल आटा मिलों से संबंधित नहीं है, बल्कि यह व्यवसायिक नीति में पारदर्शिता और न्यायसंगत कराधान की दिशा में एक अहम कदम माना जा सकता है। यदि न्यायालय इस मामले में स्पष्ट दिशा-निर्देश देता है, तो यह अन्य उद्योगों में भी नीति परिवर्तन का कारण बन सकता है।
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