
🔥 परिचय: जंगल की आग और बढ़ती चुनौती
हर वर्ष, भारत के कई हिस्सों, विशेष रूप से उत्तराखंड और ओडिशा में, जंगल की आग एक गंभीर समस्या बनकर उभरती है। 2024 में, उत्तराखंड में 653 आग की घटनाएं दर्ज की गईं, और 10,163 फायर पॉइंट्स की पहचान की गई, जो मुख्य रूप से मानवजनित कारणों से उत्पन्न हुईं । इन आगों से न केवल पर्यावरणीय नुकसान होता है, बल्कि जैव विविधता और स्थानीय समुदायों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
🛡️ ‘फायर ब्रेक’ तकनीक: आग से सुरक्षा की पारंपरिक विधि
‘फायर ब्रेक’ या ‘फायर लाइन’ एक ऐसी तकनीक है जिसमें जंगल के एक हिस्से में ज्वलनशील सामग्री, जैसे सूखी पत्तियां, झाड़ियाँ और पेड़, को हटाकर एक खाली पट्टी बनाई जाती है। यह पट्टी आग के फैलाव को रोकने में मदद करती है, क्योंकि आग को फैलने के लिए ईंधन नहीं मिलता ।
🏞️ ब्रिटिश काल की विरासत: उत्तराखंड में ‘फायर ब्रेक’ का पुनरुद्धार
ब्रिटिश शासन के दौरान, उत्तराखंड के जंगलों में ‘फायर ब्रेक’ बनाए गए थे। हालांकि, 1980 के दशक में पर्यावरणीय कारणों से इनका रखरखाव बंद हो गया। अब, उत्तराखंड वन विभाग ने इन पुरानी ‘फायर ब्रेक’ को पुनः सक्रिय करने का निर्णय लिया है। 400 किलोमीटर लंबी फायर लाइनों को साफ करने का कार्य शुरू हो चुका है, जिसे अगले दो वर्षों में पूरा करने की योजना है ।
🛠️ ‘फायर ब्रेक’ निर्माण की प्रक्रिया
‘फायर ब्रेक’ बनाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैं:
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स्थान चयन: आग के संभावित मार्गों की पहचान कर उपयुक्त स्थानों का चयन।
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साफ-सफाई: चयनित क्षेत्र से सूखी पत्तियां, झाड़ियाँ और अन्य ज्वलनशील सामग्री को हटाना।
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रखरखाव: नियमित अंतराल पर ‘फायर ब्रेक’ की सफाई और निरीक्षण।
इस प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों की भागीदारी और पारंपरिक ज्ञान का उपयोग महत्वपूर्ण होता है।
🌿 स्थानीय समुदायों की भूमिका
उत्तराखंड के नकिना वन पंचायत में, समुदाय ने पत्थर की दीवारें और ‘फायर ब्रेक’ बनाकर जंगल की आग से सुरक्षा सुनिश्चित की है। यह पहल न केवल आग से सुरक्षा प्रदान करती है, बल्कि चराई और अतिक्रमण को भी रोकती है ।
🌍 पर्यावरणीय लाभ
‘फायर ब्रेक’ तकनीक के उपयोग से निम्नलिखित पर्यावरणीय लाभ प्राप्त होते हैं:
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जंगल की आग के फैलाव को रोकना।
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जैव विविधता की सुरक्षा।
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मिट्टी के क्षरण को कम करना।
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स्थानीय जलवायु पर सकारात्मक प्रभाव।
🧭 भविष्य की दिशा
भारत में ‘फायर ब्रेक’ तकनीक का पुनरुद्धार जंगल की आग से निपटने में एक महत्वपूर्ण कदम है। स्थानीय समुदायों की भागीदारी, पारंपरिक ज्ञान का उपयोग और सरकारी समर्थन से इस तकनीक को और प्रभावी बनाया जा सकता है।