Newsउत्तराखंड

जंगल की आग से निपटने के लिए ‘फायर ब्रेक’ तकनीक का पुनरुद्धार

‘फायर ब्रेक’ तकनीक का पुनरुद्धार

उत्तराखंड में हर साल जंगलों में लगने वाली आग एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। गर्मी के मौसम में हजारों हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो जाते हैं, जिससे पर्यावरण, वन्यजीव, और मानव जीवन प्रभावित होता है। लेकिन इस बार उत्तराखंड वन विभाग ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है — ‘फायर ब्रेक’ (Fire Break) तकनीक का पुनरुद्धार, जो ब्रिटिश काल में भी कारगर मानी जाती थी।


🌲 क्या है ‘फायर ब्रेक’ तकनीक?

फायर ब्रेक एक पारंपरिक तकनीक है जिसमें जंगलों में एक निर्धारित चौड़ाई की खाली पट्टी (patrolling line) तैयार की जाती है। इस पट्टी में सभी पेड़-पौधों को हटा दिया जाता है ताकि यदि कहीं आग लगती है, तो वह इस पट्टी को पार न कर सके और बाकी जंगल को प्रभावित न करे।

🔍 उदाहरण के लिए, अगर किसी क्षेत्र में 500 हेक्टेयर का जंगल है, तो हर 100-150 मीटर के बाद 10 मीटर चौड़ी पट्टी बनाई जाती है, जिससे आग आगे नहीं बढ़ती।


🔥 क्यों जरूरी हो गया फायर ब्रेक का उपयोग?

हर साल उत्तराखंड के जंगलों में आग से हजारों पेड़-पौधे जल जाते हैं। 2024 में ही करीब 4,000 हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल की आग फैली थी। ऐसे में:

  • आग के फैलाव को रोकना जरूरी है।

  • जान-माल की सुरक्षा जरूरी है।

  • पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना जरूरी है।

वन विभाग ने पाया कि मॉडर्न फायर फाइटिंग सिस्टम हर बार प्रभावी नहीं होता, खासकर ऊँचाई वाले दुर्गम इलाकों में। इसी कारण ब्रिटिश युग की ‘फायर ब्रेक’ प्रणाली को फिर से लागू करने का निर्णय लिया गया है।


🛠️ कैसे बन रही हैं फायर ब्रेक लाइंस?

उत्तराखंड में फरवरी 2025 से शुरू हुआ कार्य अब तेजी पकड़ चुका है। वन विभाग की टीमें:

  • जंगलों में चिन्हित क्षेत्रों में 5–10 मीटर चौड़ी फायर ब्रेक पट्टियाँ बना रही हैं।

  • सूखी पत्तियाँ, झाड़ियाँ और मृत पेड़ हटा रही हैं।

  • स्थानीय ग्रामीणों की मदद से यह कार्य पूरा किया जा रहा है, जिससे रोजगार भी बढ़ रहा है।


📍 किस जिलों में हो रहा है सबसे अधिक कार्य?

  1. पौड़ी गढ़वाल – सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र

  2. नैनीताल – हर साल जंगलों में आग लगने की सबसे अधिक घटनाएँ

  3. अल्मोड़ा और चंपावत – जहाँ आग जंगलों से गाँवों की ओर फैल जाती है

  4. देहरादून रेंज – राजधानी से सटी पहाड़ियों में भी व्यापक कार्य

वन विभाग का लक्ष्य है कि मार्च 2025 के अंत तक 1,000+ किलोमीटर फायर ब्रेक लाइनें तैयार कर ली जाएँ।


📈 क्या मिल रहे हैं इसके सकारात्मक परिणाम?

पिछले कुछ सप्ताहों में जहाँ आग लगने की कुछ घटनाएँ हुईं, वहाँ यह देखा गया कि फायर ब्रेक के कारण:

  • आग सीमित क्षेत्र में ही रही

  • बचाव कार्य अधिक आसान रहा

  • आसपास के गाँव और वन्य जीव सुरक्षित रहे

वन अधिकारियों ने पुष्टि की है कि ‘फायर ब्रेक’ के शुरुआती परिणाम उत्साहजनक हैं और आने वाले वर्षों में यह तकनीक पूरे प्रदेश में अपनाई जाएगी।


🌿 पर्यावरण और सामुदायिक भागीदारी

‘फायर ब्रेक’ तकनीक का एक और बड़ा लाभ यह है कि:

  • यह प्राकृतिक संसाधनों का न्यूनतम उपयोग करती है

  • स्थानीय ग्रामीणों की भागीदारी से जंगलों की सुरक्षा का सामुदायिक भाव जागृत होता है

  • वन्य जीवों को सुरक्षित मार्ग भी उपलब्ध होते हैं

“जंगल हमारे हैं, तो जिम्मेदारी भी हमारी है” — यही भावना अब गांवों में भी जाग रही है।


🧯 क्या हैं भविष्य की योजनाएँ?

  • ड्रोन तकनीक से निगरानी

  • स्मार्ट फायर सेंसर लगाने की योजना

  • वन कर्मचारियों का विशेष प्रशिक्षण

  • स्कूल और कॉलेजों में जागरूकता अभियान

वन विभाग ने 2025-26 के बजट में जंगल सुरक्षा के लिए अतिरिक्त 50 करोड़ रुपए निर्धारित किए हैं।


📢 निष्कर्ष

उत्तराखंड में जंगल की आग की चुनौती का सामना करने के लिए ‘फायर ब्रेक’ तकनीक का पुनरुद्धार एक दूरदर्शी और व्यवहारिक कदम है। यह तकनीक न केवल पर्यावरण को बचाने में मददगार होगी, बल्कि स्थानीय रोजगार और सामुदायिक सहभागिता को भी बढ़ावा देगी।

अगर यह रणनीति सफल होती है, तो अन्य हिमालयी राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश और सिक्किम भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित हो सकते हैं।

Tags : #FireBreak #उत्तराखंड_जंगल_की_आग #पर्यावरण_सुरक्षा #UttarakhandForestFire #वन_विकास #UttarakhandNews #ForestConservation

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button