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प्राकृतिक आपदा का तांडव

माना पास में भयंकर हिमस्खलन: 25 लोग लापता, बचाव अभियान जारी

🧊 हिमालय की गोद में तबाही: हिमस्खलन से दहशत, दर्जनों लापता

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित माना गांव के पास 28 फरवरी को एक भयंकर हिमस्खलन (Avalanche) हुआ, जिसमें कम से कम 25 लोग लापता हो गए हैं। यह हादसा भारत-तिब्बत सीमा से सटे क्षेत्र में दोपहर लगभग 12:15 बजे हुआ। स्थानीय प्रशासन, एसडीआरएफ, आईटीबीपी और सेना की टीमें बचाव अभियान में जुटी हुई हैं।


📍 माना गांव: भारत का अंतिम गांव और संवेदनशील क्षेत्र

माना गांव उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित भारत का सबसे अंतिम गांव है, जो बद्रीनाथ से लगभग 3 किमी दूर स्थित है। यह क्षेत्र हिमस्खलनों के लिए अत्यंत संवेदनशील माना जाता है, विशेषकर फरवरी-मार्च के महीनों में जब भारी बर्फबारी के बाद मौसम अचानक बदलता है।


📸 घटनास्थल का दृश्य: बर्फ की मोटी चादर में दबे लोग और सामान

घटनास्थल पर मौजूद चश्मदीदों के अनुसार, हिमस्खलन इतनी तीव्रता से हुआ कि पूरे इलाके में 15 से 20 फीट तक बर्फ की मोटी परत जम गई। कई मजदूर, स्थानीय निवासी और सीमा सड़क संगठन (BRO) के कर्मचारी काम कर रहे थे, जब यह हादसा हुआ।

“हमने अचानक तेज आवाज़ सुनी और देखते ही देखते पूरा इलाका सफेद धूल और बर्फ में ढँक गया,” – एक स्थानीय निवासी।


🚨 बचाव कार्य: समय के साथ दौड़

हादसे के तुरंत बाद प्रशासन हरकत में आया और:

  • एसडीआरएफ (SDRF), आईटीबीपी (ITBP) और स्थानीय पुलिस की टीमें घटनास्थल पर पहुंचीं।

  • हेलीकॉप्टरों के माध्यम से राहत सामग्री और बचाव दल को पहुंचाया गया।

  • बर्फ में दबे लोगों की खोज के लिए स्निफर डॉग्स और थर्मल इमेजिंग उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है।

  • अब तक 46 लोगों को सुरक्षित निकाला जा चुका है, जिनमें कुछ को गंभीर चोटें आई हैं।


🧠 विशेषज्ञों की चेतावनी: ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ा खतरा

हिमस्खलन के पीछे का कारण तेजी से बदलता मौसम, अत्यधिक बर्फबारी, और तापमान में उतार-चढ़ाव बताया जा रहा है। पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि:

  • क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ रहा है।

  • ग्लेशियर अस्थिर हो रहे हैं, जिससे हिमस्खलन की घटनाओं में वृद्धि हो रही है।

  • इस क्षेत्र में अत्यधिक निर्माण कार्य और मानव हस्तक्षेप भी जोखिम को बढ़ा रहे हैं।

“हिमालयी क्षेत्रों में हर साल हिमस्खलनों की तीव्रता और संख्या दोनों में बढ़ोतरी हो रही है।” — डॉ. रजनीश त्रिपाठी, पर्यावरण विशेषज्ञ


🧾 सरकारी प्रतिक्रिया: उच्चस्तरीय जांच और सतर्कता निर्देश

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने इस घटना पर शोक जताते हुए तुरंत आपदा नियंत्रण कक्ष को सक्रिय किया और अधिकारियों को 24×7 निगरानी और राहत कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए। उन्होंने ट्वीट किया:

“माना पास के पास हुए हिमस्खलन की घटना अत्यंत दुखद है। हम लापता लोगों को जल्द से जल्द खोजने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं।”

केंद्र सरकार ने भी NDRF को तैयार रहने के निर्देश दिए हैं और रक्षा मंत्रालय ने सेना को हर स्थिति के लिए सतर्क कर दिया है।


💔 परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल

माना गांव और आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोग अपनों की तलाश में बेहाल हैं। कई परिजन राहत शिविरों में डटे हुए हैं और हर आने-जाने वाली एंबुलेंस से अपने लोगों की खबर पाने की कोशिश कर रहे हैं।

“मेरा भाई कल सुबह ही काम पर गया था, अब तक उसका कुछ पता नहीं है…” — एक पीड़ित का भाई


📜 पिछली घटनाएं: चमोली में यह कोई पहली बार नहीं

चमोली जिला पहले भी कई बार प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर चुका है:

  • फरवरी 2021: तपोवन-रैणी ग्लेशियर टूटने से विनाशकारी बाढ़

  • 2023: जोशीमठ भू-धंसाव संकट

  • 2024: औली क्षेत्र में बर्फीले तूफान से 12 लोगों की मौत

इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं का खतरा लगातार बढ़ रहा है, और इस पर नियंत्रण के लिए ठोस नीति की आवश्यकता है।



🔚 निष्कर्ष: प्रकृति की चेतावनी को गंभीरता से लेना होगा

माना पास में हुआ यह हिमस्खलन केवल एक आपदा नहीं, बल्कि चेतावनी है। अगर हम अब भी हिमालय की संवेदनशीलता को नजरअंदाज करते रहे, तो आने वाले वर्षों में इससे भी बड़े खतरे उत्पन्न हो सकते हैं। ज़रूरत है:

  • वैज्ञानिक तरीके से आपदा प्रबंधन प्रणाली विकसित करने की

  • हिमालयी क्षेत्रों में नियंत्रित विकास नीति अपनाने की

  • और सबसे जरूरी, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सामूहिक वैश्विक प्रयासों की

 

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