उत्तराखंड के चमोली जिले में 2 मार्च 2025 को एक भयंकर हिमस्खलन (Avalanche) की घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया। यह हादसा भारत-चीन सीमा के पास स्थित माना गाँव के निकट सीमा सड़क संगठन (BRO) के निर्माण स्थल पर हुआ, जहाँ लगभग 54 मजदूर कार्यरत थे। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में 8 मजदूरों की जान चली गई, जबकि 46 को सफलतापूर्वक बचा लिया गया।
📍 क्या हुआ था 2 मार्च को?
2 मार्च को दोपहर के आसपास माना गाँव में अचानक भारी हिमस्खलन हुआ। माना गाँव समुद्र तल से लगभग 3,200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और इसे भारत का अंतिम गाँव भी कहा जाता है। यहाँ BRO द्वारा एक सामरिक महत्व की सड़क परियोजना पर निर्माण कार्य चल रहा था, जिसका उद्देश्य भारत-चीन सीमा तक संपर्क को सुदृढ़ करना है।
हिमस्खलन इतनी तेजी और ताकत से आया कि मजदूरों को संभलने का भी मौका नहीं मिला। कुछ ही पलों में पूरी कार्यस्थल बर्फ की मोटी चादर के नीचे दब गई।
🛠️ बचाव कार्य में तेजी
घटना की सूचना मिलते ही राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF), सेना, और स्थानीय प्रशासन के संयुक्त प्रयास से एक बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया गया। ड्रोन, थर्मल इमेजिंग, सर्च डॉग्स और बर्फ काटने वाली मशीनों की मदद से कई घंटों तक राहत और बचाव कार्य जारी रहा।
✅ 46 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला गया
❌ 8 मजदूरों के शव बर्फ के नीचे से बरामद किए गए
🧊 हिमस्खलन क्यों हुआ?
विशेषज्ञों के अनुसार, हिमस्खलन का मुख्य कारण पिछले कुछ दिनों से हो रही भारी बर्फबारी और तापमान में अचानक परिवर्तन था। हिमालयी क्षेत्रों में तापमान में उतार-चढ़ाव और ढलानों पर बर्फ के अधिक जमाव से हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और अत्यधिक मानव गतिविधियाँ, विशेषकर निर्माण कार्य, भी इन क्षेत्रों में प्राकृतिक असंतुलन पैदा कर रही हैं।
🌐 सामरिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से स्थान का महत्व
माना गाँव सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत-चीन सीमा के बेहद नजदीक स्थित है। BRO यहाँ जो सड़क निर्माण कर रही है, उसका उद्देश्य भारतीय सेना की आवाजाही को सुगम बनाना है।
इस क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों की सुरक्षा को लेकर पहले भी चिंता जताई गई थी। ऊँचाई वाले इलाकों में काम करते हुए पर्यावरणीय खतरों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण और उपकरणों की आवश्यकता होती है।
🧾 मृतकों के परिवारों को मुआवजा
उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार द्वारा मृतकों के परिवारों को ₹10 लाख तक की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की गई है। इसके अतिरिक्त घायलों को मुफ्त इलाज की व्यवस्था और पुनर्वास सहायता दी जा रही है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घटना पर शोक व्यक्त करते हुए कहा:
“यह एक अत्यंत दुखद घटना है। सरकार मृतकों के परिवारों के साथ खड़ी है और रेस्क्यू ऑपरेशन की निगरानी खुद कर रही है।”
🚨 भविष्य के लिए सबक
यह हादसा यह स्पष्ट करता है कि पर्वतीय इलाकों में चल रहे सामरिक और विकास परियोजनाओं में सुरक्षा मानकों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। BRO जैसे संगठनों को चाहिए कि:
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कार्यस्थलों पर हिमस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली लगाई जाए।
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मजदूरों को हाई-एल्टीट्यूड सुरक्षा प्रशिक्षण दिया जाए।
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आपातकालीन शरण स्थल (Emergency Shelters) बनाए जाएं।
📸 सोशल मीडिया और जागरूकता
इस घटना के वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुए, जिससे आम जनता को भी पर्वतीय क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं के खतरों के प्रति जागरूकता मिली। कई पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस हादसे को जलवायु परिवर्तन का संकेत बताया और निर्माण कार्यों में पर्यावरणीय आकलन को अनिवार्य बनाने की मांग की।
🗞️ निष्कर्ष
माना गाँव में हुआ हिमस्खलन केवल एक दुखद दुर्घटना नहीं, बल्कि एक चेतावनी है—जिसे हमें गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। हिमालयी क्षेत्रों में विकास और सुरक्षा दोनों जरूरी हैं, लेकिन इनके बीच संतुलन बनाना अब और अधिक जरूरी हो गया है। सरकार, प्रशासन, पर्यावरणविद् और आम नागरिक सभी को मिलकर ऐसी आपदाओं से बचाव के उपाय करने होंगे।
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