फर्जीवाड़े की आस्था फाउंडेशन: हाईकोर्ट में फर्जी सदस्यता और अध्यक्षीय टकराव ने खोली संगठन की परतें

फर्जीवाड़े की आस्था फाउंडेशन: हाईकोर्ट में फर्जी सदस्यता और अध्यक्षीय टकराव ने खोली संगठन की परतें
जांच में फर्जी निकले हस्ताक्षर और सील, कई वर्षों से चल रहा था फर्जीवाड़ा
इंदौर
सामाजिक संस्था आस्था फाउंडेशन एक बड़े विवाद में फंस गई है। संगठन से जुड़े 21 पदाधिकारियों पर फर्जी दस्तावेज़ बनाकर हाईकोर्ट में पेश करने, फर्जी सदस्यता सूची तैयार करने और पदाधिकारी चुनने के नाम पर धोखाधड़ी करने का गंभीर आरोप है। परदेशीपुरा पुलिस ने इन सभी के खिलाफ धोखाधड़ी, कूटरचना और साजिश की धाराओं में एफआईआर दर्ज कर ली है।
इस मामले की शिकायत संस्था के पूर्व अध्यक्ष अनिल शांतिलाल सांघवी निवासी स्कीम-74, विजय नगर ने की थी। शिकायत में उन्होंने संस्था के भीतर वर्षों से चुनाव न होने, फर्जी तरीके से पदाधिकारियों की सूची तैयार कर कोर्ट में पेश करने और संस्था के नाम पर निर्णय लेने का आरोप लगाया।
पुलिस जांच में सामने आया कि 14 जनवरी 2021 को संस्था के पदाधिकारी चुने जाने का दावा करते हुए दो अलग-अलग सूची तैयार की गई। एक सूची में श्वेता चौकसे को अध्यक्ष बनाया गया, जबकि दूसरी सूची में जयनारायण चौकसे को। विवाद तब और गहराया जब एक सूची में सहायक पंजीयक की जाली सील लगाकर हाईकोर्ट में याचिका (क्रमांक 8695) के साथ पेश की गई।
टीआई कपिल शर्मा के अनुसार, वर्ष 2016 में संस्था की सामान्य बैठक में शांतिलाल को सचिव और डॉ. रमेश बदलानी को अध्यक्ष चुना गया था। यह जानकारी पंजीयन कार्यालय में भी दर्ज है। इसके बावजूद डॉ. बदलानी ने कथित तौर पर संस्था के असत्य दस्तावेज़ तैयार करवाए और फर्जी सदस्यों के साथ मिलकर संगठन पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की।
एफआईआर में जिन 21 पदाधिकारियों को आरोपी बनाया गया है, उनमें श्वेता चौकसे, ध्रुव गुप्ता, आशिष जयसवाल, विशाल चित्तौड़ा, संदीप शेखर, वीराट जयसवाल, उपेंद्र तोमर, राकेश सहदेव, मनोज अग्रवाल, सागर शेखर जैसे नाम शामिल हैं। इन पर आरोप है कि इन्होंने जानबूझकर फर्जी सदस्यों की सूची तैयार की और सरकारी रिकॉर्ड में गुमराह करने वाले दस्तावेज़ प्रस्तुत किए।
टीआई का कहना है कि पुलिस ने जब दस्तावेजों की जांच की तो स्पष्ट हो गया कि दोनों सूचियों में न केवल अध्यक्ष बदल दिए गए थे, बल्कि कई हस्ताक्षर और सील भी फर्जी पाई गई। प्रारंभिक जांच में ये भी पाया गया कि कुछ नामों को बिना सहमति के सदस्य दिखाया गया।
फिलहाल मामला हाईकोर्ट में लंबित है लेकिन एफआईआर के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि संस्था के भीतर लंबे समय से अंदरूनी सत्ता संघर्ष चल रहा था, जिसे अब कानूनी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। पुलिस ने 21 लोगों के खिलाफ विस्तृत जांच शुरू कर दी है और विभिन्न शासकीय कार्यालयों से दस्तावेज़ मंगवाए जा रहे हैं।